"यह हॊदी थोरी नीची अऊ छोटि रहि गै है"....बप्पा उवाच। "ह्म्म्म्म, यहॆ हमहू कहे वाले रहन..", दर्शक रिप्लाइड।
सिपाही....
झाड़ झंखाड़......
झाड़ झंखाड़......
गांव के बाहर खेड़ा.....
ये लो दूसरा......
नहरिया आयी है......
पानी हियॊं भरि होई.....
ये सरकारी फ़िर भी असरकारी तालाब.....
सरकारी चीज है...दो बार नहीं आ सकती क्या....
कुक्कू नरेश और दादा.......
यह वो जगह जिसने ठाकुर तालाब को पुनः आबाद किया....
ये साहब इशारा कर रहे हैं, और इशारे का परिणाम उपर की फोटो......"यहकी लेऒ..यहि ते भरा है सब, तालम पानी.."
ये अपने दादा(चश्मे और इश्टाइल वाले) और राजू चाचा(दाढी और भोकाल वाले)....
पुनः....पर अधूरे....
ये अपने दादा(चश्मे और इश्टाइल वाले) और राजू चाचा(दाढी और भोकाल वाले)....
पुनः....पर अधूरे....
हवाई यात्रा करने वालों (शोहरत, पैसे और चकाचौन्ध पर बात करते हुये केवल फ़िल्मी बातें झाड़ने वालों), यह बैलगाड़ी है । बैलों के द्वारा खींचे जाने के कारण यह बैलगाड़ी कहलाती है । इसका यह जो हिस्सा आप देख रहे है, इस पर बैलगाड़ी का ड्राइवर(पाइलट भी चलेगा) भी बॆठता है, और बाकीयों को भी बैठा लेता है...जाने कैसे?
(फोटो इसलिये क्योंकि गांवों मे भी एक दुर्लभ वस्तु है, बैलगाड़ी...चलती दिखे कहीं तो एक फोटू हमे जरूर भेजें)