सर्दी की रात
एक पतली शर्ट
साहबों की मार और गालियां
उनकी जूठन के साथ खा
नंगे पांव
आंखें मिचमिचा
दांत किटकिटा
नाक पोंछ
शायद यही कह रहा था
मैं हूं तुम्हारे
महान देश का भविष्य
आओ और मुझे
छाप दो
साल का श्रेष्ठ चित्र बनाकर
लिखो मुझपर
भावुक कविता
फ़िर छोंड़ दो
जी जी कर मरने के लिये
...रवीन्द्र
No comments:
Post a Comment