Sunday, January 21, 2007

आओ अब कुछ नया लिखो




छोंड़ धूप का कोट, छांव की पतली शर्ट पहन
ढीला पैजामा सपनों का ,हैट रसीली पुरवा
करे कभी मुस्कान कबड्ड़ी होंठों पर
मन में तो दिन भर ही उधम मचाती हो
मस्ती का एक धूप-छांव का चश्मा ले लो
दोस्त आज कुछ अलग दिखो
आओ अब कुछ नया लिखो

मटमैले मैदानों मे धूसर
जाने कितनी भागम भागी
मन भर मारो हाई जम्प
और नयी कोई चोटी छू लो,
चुन लो सागर से मदहोशी
पागल लहरों से प्रलय सीख लो
दोस्त आज यह सोम चखो
आओ अब कुछ नया लिखो

बहुत हुआ आंखों का झीलों सा,
होन्ठों का मूंगे सा दिखना
खुश होना ताली दे हंसना
थाली ही में चांद देखना

आंखें मीठी रसगुल्ले सी,
होंठ मिर्च से तीखे देखो
छोंड़ो, मोड़ो, बदलो, तोड़ो
जी टी रोड़ जो हुयी पुरानी आज नयी पगड़ंड़ी पकड़ो
और चांद को खींच गली मे
डोर फ़ंसा कुछ देर घसीटो
आओ कुछ तो नया लिखो

5 comments:

Udan Tashtari said...

पजामे पर हैट लगा कर तो यूँ भी अलग ही दिखोगे, भाई!! :)

कृप्या अन्यथा न लें.

अनूप शुक्ल said...

बहुत अच्छा लगा यह पढ़ना!

Divine India said...

लिखना तो पड़ेगा…नया कबतक ढोते रहेगें पुरानी जिन्स को…नया सवेरा…नया आवरण्…नया वरन तो करना हीं होगा…अच्छा लिखा है…

Pratyaksha said...

वाह ! बढिया

Mohinder56 said...

धन्यवाद मित्र आपके बहुमुल्य शब्दों के लिये जो आपने मेरी रचना को सराहा
आपकी रचनायें कमाल की हैं, भाव व अभिव्यक्ति का सुन्दर संगम

mohinder