सर्दी की रात
एक पतली शर्ट
साहबों की मार और गालियां
उनकी जूठन के साथ खा
नंगे पांव
आंखें मिचमिचा
दांत किटकिटा
नाक पोंछ
शायद यही कह रहा था
मैं हूं तुम्हारे
महान देश का भविष्य
आओ और मुझे
छाप दो
साल का श्रेष्ठ चित्र बनाकर
लिखो मुझपर
भावुक कविता
फ़िर छोंड़ दो
जी जी कर मरने के लिये
...रवीन्द्र
8 comments:
बंधु रवींद्र, आपकी उपस्थिति शानदार है... इसे बरकरार रखिये. शुभकामना!
achcha likha hai aapne ! aise chitron se kuch der ki sahanubhuti upajti hai, par thodi der mein use aksar hum masthishk ke kisi kone mein daba dete hain.
अच्छा चित्रण किया सत्यता का. बधाई.
सत्यता का सुन्दर चित्रण, या यों कहे
चित्रमय कविता।
अच्छा लिखा है
साधुवाद
माटि की सोंधी गंध फैलाते रहिये।नियमित लिखते रहिये।
"लिखो मुझपर
भावुक कविता"
वास्तव में भावुक कर देने वाली पंक्तियाँ हैं ...
chitra aur kavita kya aapne contrast ki parkalpna karte huye rakhe hain?
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