Monday, January 15, 2007

मटमैला बचपन




सर्दी की रात
एक पतली शर्ट
साहबों की मार और गालियां
उनकी जूठन के साथ खा
नंगे पांव
आंखें मिचमिचा
दांत किटकिटा
नाक पोंछ
शायद यही कह रहा था
मैं हूं तुम्हारे
महान देश का भविष्य

आओ और मुझे
छाप दो
साल का श्रेष्ठ चित्र बनाकर
लिखो मुझपर
भावुक कविता
फ़िर छोंड़ दो
जी जी कर मरने के लिये

...रवीन्द्र

8 comments:

Anonymous said...

बंधु रवींद्र, आपकी उपस्थिति शानदार है... इसे बरकरार रखिये. शुभकामना!

Manish Kumar said...

achcha likha hai aapne ! aise chitron se kuch der ki sahanubhuti upajti hai, par thodi der mein use aksar hum masthishk ke kisi kone mein daba dete hain.

Udan Tashtari said...

अच्छा चित्रण किया सत्यता का. बधाई.

Anonymous said...

सत्यता का सुन्दर चित्रण, या यों कहे
चित्रमय कविता।

bhuvnesh sharma said...

अच्छा लिखा है
साधुवाद

अफ़लातून said...

माटि की सोंधी गंध फैलाते रहिये।नियमित लिखते रहिये।

Dr. Seema Kumar said...

"लिखो मुझपर
भावुक कविता"

वास्तव में भावुक कर देने वाली पंक्तियाँ हैं ...

Anonymous said...

chitra aur kavita kya aapne contrast ki parkalpna karte huye rakhe hain?